व्याख्या: डिजिटल गिरफ्तारी क्या है, कैसे लोग इसमें फंस जाते हैं और उनके पैसे लूट लिए जाते हैं?
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डिजिटल अरेस्ट: पिछले कुछ दिनों से डिजिटल अरेस्ट स्कैम की खूब चर्चा हो रही है। देश में इस तरह के मामले बढ़ते जा रहे हैं। हाल ही में मध्य प्रदेश पुलिस ने एक कारोबारी को इस स्कैम से बचाया। हाल ही में डिजिटल अरेस्ट शब्द बार-बार सुर्खियां बटोर रहा है। इसकी वजह से कई अमीर लोगों को डिजिटल अरेस्ट के नाम पर अरबों रुपए का नुकसान हो रहा है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी इस स्कैम को लेकर चेतावनी जारी कर चुके हैं। ताजा मामले में मध्य प्रदेश पुलिस ने भोपाल के एक कारोबारी को साइबर अपराधियों का शिकार होने से बचाया। आखिर डिजिटल अरेस्ट क्या है? साइबर फ्रॉड के मामले अचानक इस तरह क्यों बढ़ गए हैं? क्या इसे रोकने का कोई तरीका है? आइए इन सभी सवालों के जवाब जानते और समझते हैं। डिजिटल अरेस्ट: एक तरह का स्कैम जी हां, यह एक तरह का साइबर फ्रॉड है। लोगों को ठगने का यह एक नया और खतरनाक तरीका है। इस शब्दावली के दो भाग हैं: डिजिटल अरेस्ट और स्कैम। डिजिटल अरेस्ट को समझने से पहले यह जानना बहुत जरूरी है कि कानून में ऐसा कोई शब्द नहीं है। डिजिटल अरेस्ट साइबर अपराधियों द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली एक भ्रामक रणनीति है। लक्ष्य है उगाही
इस संबंध में, किसी व्यक्ति की गिरफ्तारी के बारे में झूठे दावे अक्सर डिजिटल माध्यमों, फोन पर या ऑनलाइन संचार के माध्यम से किए जाते हैं। इसका एकमात्र लक्ष्य लोगों में दहशत का माहौल बनाना होता है, जिसके बाद पीड़ित को यह विश्वास दिलाया जाता है कि वह आपराधिक गतिविधियों में शामिल है और अंततः उससे मोटी रकम उगाही जाती है। यह पूरी प्रक्रिया बहुत ही योजनाबद्ध तरीके से अपनाई जाती है, ताकि पीड़ित घटना के बाद कभी भी अपराध की रिपोर्ट न कर सके।
कई तरीकों से पैसे उगाहे जाते हैं।
यह कई तरीकों से हो सकता है। लेकिन इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि पकड़े गए व्यक्ति को धमकी या लालच देकर घंटों या दिनों तक कैमरे के सामने रहने के लिए मजबूर किया जाता है, इसलिए वह घबराकर अपना बहुत सारा निजी डेटा दे देता है, जिसकी मदद से उसके खाते से पैसे निकाले जा सकते हैं। निकासी चोरी हो जाती है, आपके नाम पर फर्जी काम भी हो जाता है और नकद निकासी हमेशा शामिल रहती है।
कैसे शुरू होता है?
पूरा घोटाला एक साधारण मैसेज, ईमेल या व्हाट्सएप मैसेज से शुरू होता है। जिसमें दावा किया जाता है कि पीड़ित किसी तरह की आपराधिक गतिविधियों में लिप्त है। इसके बाद वीडियो या फोन कॉल के जरिए उस पर कुछ औपचारिकताएं पूरी करने का दबाव बनाया जाता है और पुष्टि के लिए कई तरह की जानकारियां भी मांगी जाती हैं। ये कॉल करने वाले खुद को पुलिस अधिकारी, नारकोटिक्स अधिकारी, साइबर सेल पुलिस, आयकर अधिकारी या सीबीआई अधिकारी बताते हैं। ये नियमित रूप से किसी वर्दीधारी कार्यालय से कॉल करते हैं।
एक तरह से पीड़ित हिरासत में ही रहता है।
इसके बाद पीड़ित पर झूठे आरोप लगाने का दबाव बनाया जाता है और कानूनी कार्रवाई की धमकी दी जाती है और कहा जाता है कि पूछताछ के दौरान उसे वीडियो कॉल पर ही रहना होगा और किसी और से बात नहीं कर पाएगा, जब तक उसके दस्तावेज आदि की पुष्टि नहीं हो जाती।
फिर आपसे पैसे और जानकारी छीन ली जाती है।
यहीं से पीड़ित बेचैन और तनावग्रस्त हो जाता है, जिसके बाद सारी जानकारी हासिल करने के बाद मामले को शांत करने के लिए उससे बातचीत की जाती है, जिसमें उससे एक बड़ी रकम मांगी जाती है। यह पैसा ऐसे खातों में जमा करा दिया जाता है, जिनका अपराधियों की पहचान से कोई लेना-देना नहीं होता और वहां से तुरंत पैसे निकालकर ये लोग गायब हो जाते हैं।
यह डिजिटल गिरफ्तारी इंटरनेट के ज़रिए ब्लैकमेल से ज़्यादा ख़तरनाक है क्योंकि इसमें पैसे के साथ-साथ संवेदनशील जानकारी भी हासिल की जाती है। इसमें बैंक अकाउंट नंबर, क्रेडिट कार्ड नंबर, पासवर्ड आदि शामिल हैं। यहाँ ध्यान देने वाली बात यह है कि हमारे देश में इस तरह से किसी भी तरह की जांच, जाँच या गिरफ़्तारी का कोई कानूनी प्रावधान नहीं है। विशेषज्ञ ऐसे मामलों में निजी जानकारी न देने, किसी भी हालत में कहीं भी पैसे ट्रांसफर न करने और पुलिस को मामले की पूरी जानकारी देने की सलाह देते हैं।
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